सोमवार से शुरू हो रहे संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण में दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा पर सरकार और विपक्ष के बीच टकराव की जमीन तैयार हो गई है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने जहां इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की रणनीति बनाई है। वहीं सरकार ने भी इस मुद्दे पर आक्रामक तेवर दिखाने का निर्णय लिया है। जाहिर तौर पर दिल्ली हिंसा पर सरकार और विपक्ष के बीच सियासी खींचतान का सीधा असर संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही पर पड़ेगा।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, वाम दल, एआईएमआईएम, आम आदमी पार्टी समेत कुछ अन्य दलों ने दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा मामले में संसद के दोनों सदनों में कार्यस्थगन प्रस्ताव पेश करने और गृह मंत्री अमित शाह का इस्तीफा मांगने की रणनीति बनाई है।
लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि देश की राजधानी तीन से चार दिनों तक लगातार हिंसा की आग में जली और दिल्ली पुलिस के साथ-साथ गृह मंत्री अमित शाह हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे।
सरकार के मंत्री और भाजपा के नेता आपत्तिजनक बयानों से पूरे देश का माहौल खराब कर रहे हैं, ऐसे में हम चुप्पी साध कर बैठे नहीं रह सकते। हम पूरी ताकत से इस मामले को संसद के दोनों सदनों में उठाएंगे और गृह मंत्री के इस्तीफे की मांग करेंगे।
दूसरी ओर सरकार ने भी दिल्ली हिंसा पर विपक्ष पर पलटवार की रणनीति बनाई है। सरकार के सूत्रों का कहना है कि दिल्ली हिंसा की जांच में आप और कांग्रेस के वर्तमान और पूर्व पार्षद प्रमुख साजिशकर्ता के तौर पर सामने आए हैं।
ऐसे में सरकार की ओर से दिल्ली पुलिस की जांच के हवाले से विपक्ष पर निशाना साधा जाएगा। भाजपा की ओर से सवाल उठाया जाएगा कि हिंसाग्रस्त क्षेत्र में इतनी भारी संख्या में पत्थर, पेट्रोल बम कहां से आए। इस दौरान सरकार विपक्ष को दिल्ली हिंसा पर चर्चा करने की चुनौती भी देगी।
अगर सदन की कार्यवाही चली तो गृह मंत्री अमित शाह संसद के दोनों सदनों में दिल्ली हिंसा पर बयान दे सकते हैं। अपने बयान में गृह मंत्री हिंसा के कारणों और इस मामले में अब तक हुई कार्रवाई की जानकारी दे सकते हैं। हालांकि गृह मंत्री का बयान होगा या नहीं यह सदन की स्थिति पर निर्भर करेगा।
विपक्ष की रणनीति दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान गृह मंत्री, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, सांसद प्रवेश वर्मा, पूर्व विधायक कपिल मिश्रा के बयान को उठाने की होगी। कांग्रेस का आरोप है कि इन नेताओं के बयानों के कारण दिल्ली का सांप्रदायिक माहौल खराब हुआ।
दूसरी ओर इसके उलट भाजपा का कहना है कि विपक्षी नेताओं ने नागरिकता संशोधन कानून पर भ्रम फैला कर और एक विशेष वर्ग को उकसा कर सांप्रदायिक माहौल खराब किया।
दिल्ली हिंसा मामले में संसद में सबकी निगाहें भाजपा की सहयोगी अकाली दल और जदयू पर होगी। अकाली दल ने दिल्ली हिंसा मामले में सरकार की मंशा पर सार्वजनिक तौर पर सवाल उठाए हैं, जबकि जदयू ने अब तक इस मामले में चुप्पी साध रखी है। अगर इन दोनों दलों ने संसद में मोर्चा खोला तो सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी।