
भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो (ISRO) अपने पहले मानव मिशन गगनयान (Gaganyan) को सफल बनाने के लिए बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में स्थित ओपन-सर्किट विंड टनल में टेस्टिंग कर रही है। अगर गगयान का मॉडल इस टेस्ट में सफल होता है, तो उसके आधार पर एक प्रोटोटाइप बनाया जाएगा। अन्यथा असफल होने पर उसमें कई बदलाव किए जा सकते हैं। आपको बता दें कि गगनयान को पहले भी कई टेस्टिंग फेज से गुजारा गया था, जहां इसकी मजबूती को परखा गया था।
इस विंड टनल का निर्माण सन 1950 में शुरू हुआ था। इसके बाद सन 1959 में मैसूर के राजा जय चामराजेंद्र वाडियार ने इस टनल का उद्धाटन किया था। इस टनल की बात करें तो इसमें कूलिंग टावर दिया है। साथ ही इस टनल में विमान, जहाज और अंतरिक्ष लॉन्चिंग व्हीकल की टेस्टिंग की जाती है। टेस्टिंग पूरी होने के बाद मॉडल में कमियों को पूरा करने के साथ सुधार किए जाते हैं। इससे पहले इसरो टेस्टिंग के लिए लकड़ी से बने मॉडल का इस्तेमाल करती थी।
इस विंड टनल को 1.4 लाख रुपये में तैयार किया गया था। यह विंड टनल 20 फुट चौड़ी और 80 फुट लंबी है। इसके एक और 16 मीटर के दो बड़े पंखे हैं, जो 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवा फेकते हैं। वहीं, इस टनल में हवा के दवाब से मॉडल की टेस्टिंग की जाती है। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाता है कि मॉडल मजबूत है या नहीं।
देश के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मानव मिशन गगनयान के लिए वायुसेना के चार पायलटों का रूस में सख्त प्रशिक्षण शुरू हो गया है। यह प्रशिक्षण एक साल तक चलेगा। गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में इन्हें इस मिशन के लिए तैयार किया जा रहा है। इसी सेंटर में भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा और उनके साथी रवीश मल्होत्रा को ट्रेनिंग दी गई थी। हालांकि रवीश को अंतरिक्ष नहीं भेजा गया। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के एक अधिकारी ने बताया कि चारों पायलट जैव चिकित्सा, शारीरिक अभ्यास, सोयूज मानव अंतरिक्ष यान के मॉड्यूल की जानकारी हासिल करेंगे।
सार
- गगनयान के मॉडल की विंड टनल में टेस्टिंग शुरू
- गगनयान के मॉडल को पहले कई टेस्टिंग फेज से गुजारा गया
- गगनयान मिशन के लिए चार वायुसैनिक पायलटों की टेस्टिंग शुरू
विस्तार
भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो (ISRO) अपने पहले मानव मिशन गगनयान (Gaganyan) को सफल बनाने के लिए बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में स्थित ओपन-सर्किट विंड टनल में टेस्टिंग कर रही है। अगर गगयान का मॉडल इस टेस्ट में सफल होता है, तो उसके आधार पर एक प्रोटोटाइप बनाया जाएगा। अन्यथा असफल होने पर उसमें कई बदलाव किए जा सकते हैं। आपको बता दें कि गगनयान को पहले भी कई टेस्टिंग फेज से गुजारा गया था, जहां इसकी मजबूती को परखा गया था।
विंड टनल का इतिहास
इस विंड टनल का निर्माण सन 1950 में शुरू हुआ था। इसके बाद सन 1959 में मैसूर के राजा जय चामराजेंद्र वाडियार ने इस टनल का उद्धाटन किया था। इस टनल की बात करें तो इसमें कूलिंग टावर दिया है। साथ ही इस टनल में विमान, जहाज और अंतरिक्ष लॉन्चिंग व्हीकल की टेस्टिंग की जाती है। टेस्टिंग पूरी होने के बाद मॉडल में कमियों को पूरा करने के साथ सुधार किए जाते हैं। इससे पहले इसरो टेस्टिंग के लिए लकड़ी से बने मॉडल का इस्तेमाल करती थी।
इतने रुपये में टनल हुई थी तैयार
इस विंड टनल को 1.4 लाख रुपये में तैयार किया गया था। यह विंड टनल 20 फुट चौड़ी और 80 फुट लंबी है। इसके एक और 16 मीटर के दो बड़े पंखे हैं, जो 160 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवा फेकते हैं। वहीं, इस टनल में हवा के दवाब से मॉडल की टेस्टिंग की जाती है। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाता है कि मॉडल मजबूत है या नहीं।
गगनयान के लिए चार वायुसैनिक पायलटों की टेस्टिंग शुरू
देश के महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मानव मिशन गगनयान के लिए वायुसेना के चार पायलटों का रूस में सख्त प्रशिक्षण शुरू हो गया है। यह प्रशिक्षण एक साल तक चलेगा। गागरिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में इन्हें इस मिशन के लिए तैयार किया जा रहा है। इसी सेंटर में भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा और उनके साथी रवीश मल्होत्रा को ट्रेनिंग दी गई थी। हालांकि रवीश को अंतरिक्ष नहीं भेजा गया। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के एक अधिकारी ने बताया कि चारों पायलट जैव चिकित्सा, शारीरिक अभ्यास, सोयूज मानव अंतरिक्ष यान के मॉड्यूल की जानकारी हासिल करेंगे।
Source link